खरसावाँ गोलीकांड
खरसावाँ गोलीकांड भारत और खरसावाँ के इतिहास में आदिवासी संघर्ष और बलिदान का एक दुखद अध्याय है।खरसावाँ गोलीकांड घटना 1 जनवरी 1948 को झारखंड के Seraikela-Kharsawan जिले (तब बिहार) के खरसावाँ हाट मैदान में हुई। गोली कांड आजाद भारत में घाटे उन घटनाओं में शामिल हे जिसमे मानवता को शर्मसर किया था ,इस गोली कांड में गैर सरकारी आंकड़ों के अनुशार सैकड़ों लोग मरे थे।लेकिन ओडिशा सरकार ४० और बिहार सरकार १०० का आंकड़ा बताती है । सरायकेला और खरसावाँ रियासत के ओडिशा में विलय के खिलाफ और अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर आदिवासी समुदाय की एक बड़ी भीड़ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए एकत्र हुई थी।
इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन को कुचलने के लिए ओडिशा पुलिस ने मशीनगनों से गोलियां चलाईं। यह गोलियां निर्दोष और निहत्थे आदिवासियों पर बरसाई गईं, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और घायल हुए। इस बर्बर हत्याकांड की तुलना डॉ. राममनोहर लोहिया ने जालियांवाला बाग हत्याकांड से की और इसे "दूसरा जालियांवाला बाग हत्याकांड" कहा। ३ जनवरी को सरदार पटेल ने कोलकाता में अपने भाषण में इस घटना की कड़ी निंदा की थी ।
खरसावाँ गोलीकांड न केवल आदिवासी समाज के अधिकारों और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि यह घटना झारखंड के अलग राज्य की मांग में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर भी बनी। आज यह दिन आदिवासी बलिदान और उनके संघर्ष की याद दिलाता है।
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