बाहा बोंगा (baha boga rena yeneg sereng ar rochak katha)

बाहा बोंगा (बाहा पाराब )

जोहर साथियों  आइए  जानते हैं संथाल जनजाति की दूसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक पर्व "बाहा पर्व" क्या होता है? जब  शाल  वृक्ष पर फूल लगने लगता है और महुवे के वृक्ष में फल लगने को होते हैं, तब बाहा पर्व का आगाज होने लगता है। बाहा पर्व और बाहा महीने  का नाच -गान उस वक्त के सृजन हैं जब प्रकति और मनुष्य में कोई दूरियां नहीं थी,मनुष्य प्रकृति की गोद में था। संथाल जनजाति का प्राकृतिक पूजन और प्रकृति में अथक विश्वास  है। बाहा पर्व के नाच -गान का सार है, जीवन  में अपने धर्म ,विश्वास और जीवन की रक्षा करना। बाहा पर्व के गानो में संथालों की इतिहास, पूजापाठ ,प्रकृति की पूजा और धर्म के कामो के बारे में पता चलता  है। संथालों की गानों ,पूजा पाट के विधि में ,मुहावरों में ,नाच में और इनके वाद्य यंत्र की धुन में भी ,इनकी धर्म और इतिहास के बारे पता चलता है। यही संथालों की अस्तित्व को बचा के रखने में इनका मदद करती है। 

            
              बाहा पर्व फागुन महीने में मनाया जाता है। बाहा पर्व के नाच-गान सिर्फ गाने नहीं हैं ये जीवन की सार हैं । बाहा पर्व में बाहा के नाच-गान जाहेरथान के अंदर होता है ,बाहा पर्व की क्रिया  विधि तीन दिनों  तक की होती है। 
पहला दिन -उम नड़का 
दूसरा दिन -बाहा सारदी
तीसरा दिन -आ: राड़ा  

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SUBHASH CHANDRA

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